Tuesday, March 20, 2012

गुड फूड-बैड फूड Good Food & Bad Food

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खाते तो सभी हैं। कुछ जीभ (स्वाद) के लिए खाते हैं तो कुछ पेट (भरने) के लिए। खाने के ये दोनों ही अंदाज गलत हैं। खाना सेहत के लिहाज से खाना चाहिए। इसके लिए यह जानना जरूरी है कि कौन-सी चीजें या फूड आइटम हमारी सेहत के दोस्त हैं और कौन-से दुश्मन। एक्सपर्ट्स से बात करके टॉप 10 सबसे अच्छे और टॉप 10 सबसे खराब फूड/फूड आइटम्स के बारे में जानकारी दे रही हैं प्रियंका सिंह :

गुड फूड

ग्रीन टी
ऐंटि ऑक्सिडेंट से भरपूर ग्रीन टी इम्यून सिस्टम मजबूत बनाती है। निकोटिन और कैफीन न होने से शरीर पर बुरा असर नहीं। ऑर्टरीज के डैमेज को रोककर हार्ट अटैक की आशंका कम करती है। ग्रीन टी अलर्टनेस बढ़ाती है और मूड बेहतर करती है। कॉलेस्ट्रोल और कैंसर सेल्स की ग्रोथ को कम करती है। ऑर्थराइटस के मरीजों के लिए बढ़िया। वजन कम करने में भी मददगार।

मल्टिग्रेन ब्रेड
कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट, मल्टी-विटामिन और फाइबर अच्छी मात्रा में। कॉलेस्ट्रॉल और हाइपरटेंशन को कम करती है। लो ग्लाइसिमिक इंडेक्स, यानी यह धीरे-धीरे ग्लूकोज में तब्दील होता है। इससे लंबे समय तक पेट भरा होने का अहसास होता है। जरूरी फैटी एसिड्स भरपूर। दिल, शुगर, हाइपरटेंशन और बीपी के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद।

ब्रोकली
ऐंटि-ऑक्सिडेंट से भरपूर। एक छोटे फूल में करीब 175 ग्राम विटामिन-के होता है, जो हड्डियां मजबूत करता है और खून के बहाव को रोकने (ब्लड क्लॉटिंग) में मदद करता है। फाइबर, आयरन, विटामिन-सी और फॉलिक एसिड का भी अच्छा सोर्स, जो दिल की बीमारियों से बचाने में रोल निभाता है। शरीर से जहरीले तत्वों (टॉक्सिंस) को ब्रोकली निकालती है। ऑर्गनिक होने से न्यूट्रिशन वैल्यू काफी अच्छी। ब्रोकली आमतौर पर कच्ची या अधपकी खाई जाती है।

ओट्स
कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट और फाइबर खूब होते हैं। सारे जरूरी माइक्रो-न्यूटिएशन भी मिलते हैं। दिल और शुगर के मरीजों को खासतौर पर इन्हें खाने की सलाह दी जाती है। ये ट्राइग्लाइसराइड और कॉलेस्ट्रोल को कम करते हैं और शुगर लेवल को कंट्रोल में रखते हैं। कम कैलरी होने की वजह से वजन कम करने के इच्छुक लोगों के भी असरदार।

दही
बैक्टीरिया का सबसे अच्छा सोर्स। प्रोटीन और कैल्शियम भरपूर, जो हड्डियों को मजबूत करता है, मसल्स बनाता है, बाल और स्किन की भी हिफाजत करता है। पाचन के लिए बहुत असरदार। पेट की बीमारियों (डायरिया, कब्ज आदि) और इन्फेक्शन से निबटने में मददगार। ऐंटिबायॉटिक दवाओं से गुड बैक्टीरिया मर जाते हैं। दही गुड बैक्टीरिया बनाकर उनकी भरपाई करता है। बड़ी आंत (लार्ज इंटस्टाइन) के लिए खासतौर पर गुणकारी। नमक या चीनी के बिना खाना बेहतर।

ऑलिव ऑइल
ओमेगा-3 से भरपूर। 70 फीसदी तक मोनोसैचुरेटिड फैट के साथ-साथ ऐंटि-ऑक्सिडेंट और जरूरी फैटी एसिड भी खूब। ये तमाम चीजें दिल के लिए बहुत बढ़िया होती हैं। बैड कॉलेस्ट्रोल को कम कर गुड कॉलेस्ट्रॉल बढ़ाता है। ऐंटि-ऑक्सिडेंट भी खूब होते हैं। इसे लो टेम्परेचर कुकिंग के लिए यूज करना चाहिए। सलाद की ड्रेसिंग आदि के लिए यूज कर सकते हैं लेकिन हाई-कैलरी होती हैं। एक चम्मच में करीब 120 कैलरी, जो कि मक्खन लगी एक ब्रेड के बराबर हैं। कम मात्रा में खाएं।

बेरी
सभी तरह की बेरी (ब्लूबेरी, स्ट्रॉबेरी और ब्लैकबेरी) ऐंटि-ऑक्सिडेंट की बढि़या सोर्स होती हैं। ब्लूबेरी के ऑप्शन के लिए जामुन और ब्लैकबेरी के लिए काले अंगूर खा सकते हैं। ये दिल की बीमारी और कैंसर की आशंका को कम करती हैं। बेरी ऐंटि एजिंग होती हैं और शॉर्ट टर्म मेमरी लॉस को सुधारती हैं। यूरिनरी ट्रैक इन्फेक्शन (यूटीआई) को रोकती हैं। आधा कप रोजाना खानी चाहिए। बेरी जितनी डार्क, उतनी बेहतर होती हैं। शरीर में बैक्टीरिया को जमा होने से रोकती हैं।

लहसुन
लहसुन में एंथोजैक्सिन होता है, जो कॉलेस्ट्रॉल कम करता है। इम्यूनिटी बढ़ाता है और ब्लड प्रेशर को मेंटेन करता है। पेट के कैंसर को रोकने में मददगार। लहसुन को छीलकर करीब 15 मिनट के लिए छोड़ दें। इसके बाद खाएं। ज्यादा फायदा मिलेगा। लहसुन को चबाकर खाना बेहतर है। दो कलियां रोजाना खाना चाहिए।

बादाम/अखरोट
प्रोटीन, फाइबर और ओमेगा 3 के बढ़िया सोर्स। ट्रांस-फैट्स काफी कम होते हैं। बैड कॉलेस्ट्रॉल को कम कर गुड कॉलेस्ट्रॉल बढ़ाते हैं। दोनों को मिलाकर खा सकते हैं। एक दिन में 10 बादाम या पांच अखरोट या 7-8 बादाम और दो-तीन अखरोट साथ ले सकते हैं। दिल के मरीजों को 4-5 बादाम और एक-दो अखरोट से ज्यादा नहीं लेना चाहिए। गर्मियों में बादाम को भिगोकर खाना बेहतर। इसे छिलके समेत खाना चाहिए। ज्यादा खाने पर कब्ज हो सकती है।

फिश
सभी तरह की फिश में विटामिन, मिनरल, प्रोटीन अच्छी मात्रा में मिलते हैं, लेकिन समुद्री पानी की फिश (ट्यूना, साल्मन और मैकेरल) सबसे बढि़या मानी जाती हैं। इनमें खूब सारा गुड प्रोटीन, ओमेगा 3 और सभी जरूरी अमिनो एसिड होते हैं। ओमेगा 3 दिल की बीमारियों की आशंका कम करता है। अचानक होनेवाले हार्ट अटैक को रोकने में मददगार। डिप्रेशन दूर करती है। विटामिन डी का अच्छा सोर्स, जो हड्डियों, बाल, नाखून के लिए फायदेमंद।

बैड फूड

पिज़्ज़ा
रिफाइंड प्रोडक्ट, जो मैदा और क्रीम से बनता है। ग्लूकोज, कॉलेस्ट्रॉल और ट्रांस फैट काफी ज्यादा। एक छोटे-से पिज्जा में 500-600 कैलरी।

बर्गर
मैदा, टिक्की, मियोनीज आदि यानी फैट, स्टार्च और कॉलेस्ट्रॉल का भंडार। एक बर्गर में करीब 450 कैलरी, यानी एक बार के पूरे खाने से भी ज्यादा।

नूडल्स
मैदे के बने नूडल्स रिफाइन फूड की कैटिगरी में आते हैं। स्टार्च भी खूब होता है। इनमें खास न्यूट्रिशन वैल्यू नहीं होती। मोटापा बढ़ैते है। आटेवाले नूडल्स और सूजी वाली मैक्रोनी कम बेहतर। एक कटोरी में करीब 200-250 कैलरी।

सॉफ्ट ड्रिंक
सॉफ्ट ड्रिंक्स में खाली कैलरी होती हैं, जिनकी कोई न्यूट्रिशन वैल्यू नहीं होती। कार्बोनेटिड डिंक होने की वजह से कैल्शियम और विटामिन-डी सोखने की क्षमता पर बुरा असर, जिससे हडिड्यों कमजोर होती हैं। 250 मिली में करीब 110 कैलरी।

आइसक्रीम
क्रीम और आर्टिफिशल कलर होते हैं। सोडियम भी खूब होता है। साथ में प्रिजर्वेटिव का भी इस्तेमाल। कॉलेस्ट्रॉल और मोटापे को बुलावा। एक छोटे कप में करीब 250-300 कैलरी।

आलू टिक्की
आलू और स्टार्च से भरपूर, साथ ही डीप फ्राई। कॉलेस्ट्रॉल और सैचुरेटिड फैट काफी ज्यादा। मीठी चटनी में खूब शुगर। कुल मिलाकर सेहत के लिए नुकसानदेह। एक प्लेट (दो टिक्कियां ) में करीब 400 कैलरी।

पकौड़ा/समोसा
आलू, मसाले, तेल... इनका कॉम्बिनेशन, उस वक्त और खतरनाक हो जाता है, जब बार-बार एक ही तेल में इन्हें तला जाता है। इससे ट्रांस फैटी एसिड्स बन जाते हैं। एक प्लेट पकौड़े या दो समोसे में करीब 300-350 कैलरी। मार्केट की बजाय घर पर बने बेहतर।

चिप्स
एम्पटी यानी खाली कैलरी (जिनका कोई फायदा नहीं) का भंडार। बैड फैट काफी ज्यादा, यानी हार्ट की बीमारियों के साथ-साथ मोटापे को भी बुलावा। सोडियम भी काफी ज्यादा, जोकि शरीर में पानी रोक लेता है। 100 ग्रा में 250-300 कैलरी।

छोले-भठूरे
तीखे मसाले से भरपूर छोले और साथ में मैदा के भठूरे। स्टार्च की तादाद ज्यादा। डीप फ्राई होने से सैचुरेटिड फैट भी खूब। मोटापे के साथ-साथ एसिडिटी को भी न्योता। एक प्लेट (छोले और दो भठूरे) में करीब 450 कैलरी।

डिब्बाबंद फूड
तमाम कैन्ड या डिब्बाबंद खानों में प्रिजर्वेटिव, शुगर और सोडियम काफी ज्यादा होता है। इनमें न्यूट्रिशन कम होते हैं और कई बार ये जहरीले (टॉक्सिक) भी हो जाते हैं। कैलरी फूड आइटम के अनुसार।

ये भी बढि़या

वेजिटेबल/फ्रूट सलाद
टमाटर, तरबूज, चेरी, स्टॉबेरी, सेब आदि में लाइकोपिन नामक ऐंटि-ऑक्सिडेंट सबसे ज्यादा मिलता है। यह स्किन के लिए बहुत अच्छा होता है, हार्ट अटैक से बचाता है, सेल्स डैमेज और न्यूरो बीमारियों को रोकता है। हरी सब्जियों में फाइबर और ऐंटि-ऑक्सिडेंट भरपूर होते हैं।

सोयाबीन
कॉलेस्ट्रोल कम करता है। एनर्जी फूड है और शाकाहारी लोगों में प्रोटीन का सबसे बढ़िया सोर्स है। महिलाओं में मीनोपॉज स्टेज में बहुत असरदार।

डार्क चॉकलेट
ब्लडप्रेशर को कंट्रोल करती है। ऐंटि-ऑक्सिडेंट खूब होते हैं। चॉकलेट जितनी डार्क, उतनी बेहतर होती है। इनमें शुगर और फैट कंटेंट भी कम होता है।

अलसी के बीज
मोनोसैचुरेडिट फैट ज्यादा होने की वजह से कॉलेस्ट्रोल लेवल कम करता है। ओमेगा 3 का भी अच्छा सोर्स, खासकर शाकाहारी लोगों के लिए।

ऐंटि-ऑक्सिडेंट का रोल
इम्यूनिटी बढ़ाते हैं
बीपी कंट्रोल में रखते हैं
बुढ़ापे की रफ्तार को कम करते हैं
सेल्स को डैमेज होने से रोकते हैं
मेमरी और कंसन्ट्रेशन बढ़ाते हैं
दिल की बीमारियों की आशंका घटाते हैं
कैंसर की आशंका को कम करते हैं।

ओमेगा 3
कॉलेस्ट्रोल कम करता है
दिल की सेहत को दुरुस्त रखता है
इम्यूनिटी बढ़ाता है
ब्लड क्लॉटिंग में मदद करता है
डिप्रेशन कम करता है
मेमरी तेज करता है

नोट: खाने की इन सभी चीजों को पूरी तरह छोड़ना मुमकिन नहीं है। बेहतर है कि आप लिमिट में खाएं। हफ्ते में इनमें से एक-दो चीजें खा सकते हैं। इसी तरह खाते वक्त क्वांटिटी का भी ध्यान रखें। कम मात्रा में खाने से नुकसान काफी कम हो जाता है।

एक्सर्पट्स पैनल
डॉ. रितिका समादार, रीजनल हेड, डाइटेटिक्स, मैक्स हेल्थकेयर

शिखा, सीनियर डायटीशियन जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल

शिवानी पासी, डायटीशियन, श्रीबालाजी ऐक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट 
Source : http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/12313648.cms

Tuesday, March 6, 2012

जो चाहता है कि बीमार न हो वह खाने और पीने में एतेदाल से काम ले - इमामे रिज़ा र.

तिब्बे इमामे रिज़ा र.


इमामे रिज़ा र. ने तूस में क़याम (सन 201 हि0 से सन 203 हि0) के दौरान मामून रशीद की फ़रमाइश पर इंसानी जिस्म और उसमें होने वाले अमराज़ के सिलसिले में तफ़सील से एक रिसाला तहरीर फ़रमाया जिसमें आप अ0 ने खाना खाने के आदाब, पूरे साल के हर माह की आब व हवा के असरात और उस माह में किन चीज़ों का इस्तेमाल मुफ़ीद है, जिस्म को सेहतमन्द रहने के लिये किन बातों रियायत ज़रूरी है और सफ़र में क्या करना चाहिये तहरीर फ़रमाया जिसमें से कुछ ज़रूरी बातें यह हैं।

दस्तूरे इमामे रिज़ा र. उन ग़िज़ाओं के बारे में जिनको एक साथ नहीं खाना चाहिये

  1. अण्डा और मछली कि अगर एक साथ मेदे में जमा हों तो मुम्किन है कि बीमारी नुक़रस, क़ौलन्ज, बवासीर पैदा करें और दांतों में दर्द हो।
  2. दूध और दही कि बीमारी नुक़रस और बरस पैदा करते हैं।
  3. मुसल्सल प्याज़ खाना कि चेहरे पर धब्बों का सबब है।
  4. ज़्यादा कलेजी, दिल, जिगर खाना कि गुर्दे की बीमारी का सबब होता है।
  5. मछली खाने के बाद ठण्डे पानी से (जिस्म) धोना कि फ़ालिज या सकता का सबब हो सकता है।
  6. ज़्यादा अण्डा खाने से साँस लेने में तकलीफ़ और मेदा में गैस का सबब होता है।
  7. आधा पका गोश्त खाना कि पेट में कीड़े का सबब होता है।
  8. गरम और मीठी ग़िज़ा खाने के बाद पानी पीना दाँत ख़राब होने का सबब होता है।
  9. ज़्यादा शिकार का गोश्त और गाय का गोश्त खाने से अक़्ल ख़राब और हाफ़िज़ा कमज़ोर होता है।

दस्तूराते उमूमी इमामे रिज़ा र. बराये सेहत

  • इमामे रिज़ा र. बलग़म के इलाज के लिये फ़रमाया 10 ग्राम हलीला ज़र्द, 20 ग्राम ख़रदिल और 10 ग्राम आक़िर करहा को पीस कर मन्जन करो, इन्शाअल्लाह बलग़म को निकालता है मुँह को ख़ुशबूदार और दाँतों को मज़बूत करता है।
  • हर जुमे को बेरी के पत्तों से सर धोना बर्स और पागलपन से महफ़ूज़ रखता है।
  • रौग़ने ज़ैतून और आबे कासनी नफ़्स को पाक करती है, बलग़म को दूर करती है और शब-बेदारी की तौफ़ीक़ होती है।
  • ज़ैतून का तेल बड़ी अच्छी ग़िज़ा है मुंह को ख़ुशबूदार बनाता है बलग़म को दूर करता है चेहरे को सफ़ाई और ताज़गी देता है, आसाब को तक़वीयत देता है, बीमारी और ददै को दूर करता है और ग़ुस्से की आग को बुझाता है।
  • खाने के बाद सीधे लेट जाओ और दाहिना पाँव बायें पाँव पर रख लो।
  • जो चाहता है कि दर्द मसाना (गुर्दा) न हो उसे चाहिये कि कभी पेशाब न रोके अगर चे सवारी पर हो।
  • जो चाहता है कि मेदा सही रहे वह खाने के दरमियान पानी न पिये बल्कि खाने के बाद पानी पिये। खाने के दरमियान पानी पीने से मेदा कमज़ोर हो जाता है।
  • जो चाहता है कि हाफ़िज़ा ज़्यादा हो उसे चाहिये कि सात दाना किशमिश सुबह के वक्त खाये।
  • जो चाहता है कि कानों में दर्द न हो चाहिये कि सोते वक्त कानों में रूई रख ले।
  • जो चाहता है कि उसे जाड़ों में ज़ुकाम न हो उसे चाहिये कि हर रोज़ तीन लुक़मा शहद जिसमें मोम मिला हो खाये।
  • जो चाहता है कि गर्मियों में जु़काम से महफ़ूज़ रहे उसे चाहिये कि हर रोज़ एक खीरा खाये और धूप में बैठने से परहेज़ करे।
  • जो चाहता है कि तन्दरूस्त रहे और बदन हल्का और गोश्त (मोटापा) कम हो उसे चाहिये कि रात की ग़िज़ा कम खाये।
  • जो चाहता है कि नाफ़ दर्द न करे उसे चाहिये कि जब सर पर तेल लगाये तो नाफ़ पर भी तेल लगाये।
  • जो चाहता है कि गले में कव्वा न बढ़े उसे चाहिये कि मीठी चीज़ खाने के बाद सिरके से ग़रारा करे।
  • जो चाहता है कि जिगर की तकलीफ़ से महफ़ूज़ रहे वह sh हद का मुस्तक़िल इस्तेमाल करे।
  • जो तूले (लंबी) उम्र चाहता है उसको लाज़िम है कि सुब्ह के वक़्त कुछ खाया करे।
  • जो चाहता है कि क़ब्ज़ न हो वह नहार मुँह एक प्याली गरम पानी में एक चम्चा शहद घोल कर पिये।
  • जो चाहता है कि उसके बदन में गैस न बरे उसे चाहिये कि हफ़्ते में एक बार लहसुन खाये।
  • जो चाहता है कि उसके दाँत ख़राब न हों उसे चाहिये कि कोई मीठी चीज न खाये। मगर यह कि उसके बाद एक लुक्मा रोटी खा ले।
  • जो चाहता है कि ग़िज़ा ख़ूब हज़म हो उसे चाहिये कि सोने से पहले दाहनी करवट लेटे फिर बायीं करवट लेटे।
  • जो चाहता है कि बीमार न हो वह खाने और पीने में एतेदाल से काम ले।
  • दाँतों की हिफ़ाज़त के लिये ठण्डी और गर्म चीज़ें खाने से परहेज़ करना चाहिये और बहुत ज़्यादा गर्म और सख़्त चीज़ों को दाँतों से नहीं तोड़ना चाहिये।
  • मसूर की दाल दिल को नर्म करती है।
  • गेहूँ की रोटी पर जौ की रोटी को ऐसी फ़ज़ीलत है जैसी हम अहलेबैत को तमाम आदमियों पर और हर पैग़म्बर ने दुआ की जौ की रोटी खाने वालों के लिये।
  • अपने बीमारों को चुक़न्दर के पत्ते खिलाओ कि उनमें शिफ़ा ही शिफ़ा है।
  • शहद सत्तर क़िस्म की बीमारियों को दूर करता है। सफ़रा को घटाता है, प्यास की ज़्यादती को दूर करता है और मेदे को साफ़ करता है।
  • अगर लोग कम खायें तो बदन सेहतमन्द रहेंगे।
  • गाजर क़ौलन्ज (आतों के दर्द) और बवासीर से महफ़ूज़ रखती है और मरदाना क़ुव्वत में इज़ाफ़ा करती है।
Source : http://www.shiyat.ewebsite.com/articles/tibbe-masoomeen/tibbe-imam-raza-a.s.-hindi--tibbe-masoomeen--sehat-k-liye.html

Monday, March 5, 2012

विटामिन-डी की कमी, समस्या और समाधान

विकीपीडिया के अनुसार :

Vitamin D is a group of fat-soluble secosteroids. In humans, vitamin D is unique both because it functions as a prohormone and because the body can synthesize it (as vitamin D3) when sun exposure is adequate (hence its nickname, the "sunshine vitamin").

Although "vitamin D" is commonly called a vitamin, some say it should not be classified as a vitamin because it can be synthesized by the human body.[citation needed] Vitamin D fits within the definition of vitamin as it is "an organic compound required as a vital nutrient in tiny amounts by an organism. In other words, an organic chemical compound (or related set of compounds) is called a vitamin when it cannot be synthesized in sufficient quantities by an organism, and must be obtained from the diet". As with other compounds called vitamins, it was discovered in an effort to find the dietary substance that was lacking in a disease, namely, rickets, the childhood form of osteomalacia.[1]. Additionally, like other compounds called vitamins, in the developed world vitamin D is added to staple foods, such as milk, to avoid disease due to deficiency.

Measures of serum levels (from a vitamin D3 blood test) reflect endogenous synthesis from exposure to sunlight as well as intake from the diet, and it is believed that synthesis may contribute generally to the maintenance of adequate serum concentrations. The evidence indicates that the synthesis of vitamin D from sun exposure works in a feedback loop that prevents toxicity but, because of uncertainty about the cancer risk from sunlight, no recommendations are issued by the Institute of Medicine, USA, for the amount of sun exposure required to meet vitamin D requirements. Accordingly, the Dietary Reference Intakes for vitamin D assume that no synthesis occurs and that all of a person's vitamin D is from their diet, although that will rarely occur in practice.

Vitamin D is converted to calcidiol in the liver. Part of the calcidiol is converted by the kidneys to calcitriol, the biologically-active form of vitamin D. This circulates as a hormone in the blood, regulating the concentration of calcium and phosphate in the bloodstream and promoting the healthy growth and remodeling of bone. Calcidiol is also converted to calcitriol outside of the kidneys for other purposes, such as the proliferation, differentiation and apoptosis of cells; calcitriol also affects neuromuscular function and inflammation. [2]

Beyond its use to prevent osteomalacia or rickets, the evidence for other health effects of vitamin D supplementation in the general population is inconsistent.[3][4] The best evidence of benefit is for bone health[5] and a decrease in mortality in elderly women.[6]



Vitamin D - sunlight through leaves

विटामिन-डी की कमी एक आम समस्या है, लेकिन ज्यादातर लोगों को इसकी पर्याप्त जानकारी नहीं है। इसकी कमी के लक्षण आमतौर पर बहुत विलंब से पता चलते हैं। विटामिन-डी की कमी का कारण अपर्याप्त आहार के अलावा सूर्य की अपर्याप्त किरणें भी हैं। महिलाओं में आजकल धूप में निकलते समय स्कार्फ, कोट और सनस्क्रीन लोशन लगाने का चलन बढ़ा है।

इसके अलावा ऑफिस में एसी रूम में बैठकर घंटों काम करने का चलन भी बढ़ा है। इन सभी के कारण महिलाओं और पुरुषों में भी विटामिन-डी की कमी देखने को मिल रही है। अतः दिनभर में यदि कुछ समय धूप स्नान किया जाए तो विटामिन-डी की कमी कुछ हद तक पूरी की जा सकती है। विटामिन-डी कुछ खाद्य पदार्थों में जैसे पशु मांस, अंडे, मछली का तेल, डेरी उत्पादों में भी पाया जाता है।

मांसाहारी लोगों के लिए तो ये स्रोत पर्याप्त हैं, परंतु शाकाहारी लोगों द्वारा विटामिन-डी मिश्रित भोजन लेने से इस कमी को पूरा किया जा सकता है, शिशु के लिए माँ का दूध महत्वपूर्ण होता है, परंतु इसमें विटामिन-डी पर्याप्त मात्रा में मौजूद नहीं होता। अतः शिशु को विटामिन-डी मिश्रित दूध देना चाहिए। विटामिन-डी की कमी आमतौर पर अपर्याप्त दूध,अनुचित आहार,गुर्दा,यकृत या वंशानुगत बीमारियों के कारण हो सकती है।

इसकी कमी से हड्डियां नरम हो जाती हैं तथा हड्डियों में दर्द,थकान,कमज़ोरी,स्नायु ऐंठन,मांसपेशियों में कमज़ोरी(बच्चों में रिकेट्स) और उमरदराज़ लोगों में ऑस्टियोपोरोसिस हो सकते हैं। बच्चों में विटामिन-डी की कमी के कारण रक्त में कैल्शियम का स्तर कम हो जाता है तथा स्नायु ऐंठन,सांस लेने में कठिनआई,नाज़ुक हड्डियां,दांतों का देर से निकलना,चिड़चिड़ापन,अधिक पसीना आदि समस्याएं देखने को मिलती हैं। यदि आप स्वयं या अपने बच्चों में इन लक्षणों को पाएं तो अपने डाक्टर से अवश्य सम्पर्क करें और विटामिन-डी की जांच करवाएं।
Source : http://upchar.blogspot.in/search/label/%E0%A4%96%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%9C-%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%A3-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A8

Thursday, March 1, 2012

'ब्रेन फूड' है ब्रेकफास्ट

स्टडीज बताती हैं कि करीब 50 पर्सेंट ओवरवेट पेशंट्स में ब्रेकफास्ट स्किप करने की आदत होती है। वहीं, जो बच्चे घर से ब्रेकफास्ट करके निकलते हैं, वे पूरा दिन एनर्जी से भरपूर रहते हैं और स्कूल में भी अच्छा परफॉर्म करते हैं।
अगर आप एसिडिटी, ओबेसिटी या फिर शॉर्ट अटेंशन स्पैन से परेशान हैं, तो इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि आप अपना ब्रेकफास्ट स्किप कर रहे हैं। स्टडीज ये भी बताती हैं कि जो लोग रेग्युलर और प्रॉपर ब्रेकफास्ट लेते हैं, उनकी मेमरी शार्प रहती है और सोचने- समझने की कपैसिटी भी बढि़या रहती है। इसीलिए ब्रेकफास्ट को 'ब्रेन फूड' भी कहा जाता है।
डायटीशियन अनिता जताना के मुताबिक, मेट्रो सिटीज की लाइफस्टाइल में हेक्टिक शेड्यूल के चलते ब्रेकफास्ट को मिस करना आम बात हो गई है। एक सेहतमंद नाश्ते के ट्रडीशन को फॉलो न करने के लिए लोगों के पास कई तरह के एक्सक्यूज हैं। अक्सर टाइट वर्क शेड्यूल, लेट नाइट डिनर के अलावा जीरो फिगर की चाहत भी ब्रेकफास्ट से दूर करती है।
इंटरनल मेडिसिन कंसलटेंट डॉ. वीरेंदर आनंद के मुताबिक, जो लोग सुबह में नहीं खाते, उन्हें लॉन्ग टर्म में कोलेस्ट्रॉल और कॉरनेरी प्रॉब्लम्स हो सकती हैं। मॉर्निंग मील को स्किप करने से गॉल- ब्लैडर डिजीजेज भी हो सकते हैं। बकौल डॉ. आनंद, 'प्रोटीन रिच, हाई फाइबर और लो फैट ब्रेकफास्ट को आप अपनी लाइफटाइम हैबिट बना लें। खुद को 'गुड मॉर्निंग' कहने का यह सबसे अच्छा तरीका है।'
घटता है एनर्जी लेवल
देखा गया है कि करीब 50 पर्सेंट ओवरवेट पेशंट्स में ब्रेकफास्ट स्किप करने की आदत होती है। अगर आप वेट घटाने के लिए ऐसा कर रहे हैं तो उससे आपका वेट और बढ़ सकता है। इससे ऐसा भी हो सकता है कि आपको अगली मील लेने के वक्त ज्यादा भूख लगे और आप ज्यादा खा लें। एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर आप एक साथ ज्यादा खाते हैं तो इससे फैट बढ़ने के चांस रहते हैं, जबकि छोटी डाइट कई बार लेने से आपको उतनी ही कैलोरी मिलेगी और एनर्जी भी बनी रहेगी। जब आप बिना ब्रेकफास्ट के अपना काम शुरू करते हैं तो आपका एनर्जी लेवल कम होता जाता है, क्योंकि पेट खाली होता है।


एक्सपर्ट्स के मुताबिक , डाइजेस्टिव ट्रैक के मूवमेंट और प्रॉपर फंक्शनिंग के लिए सुबह के हल्के खाने की जरूरत होती ही है। जो लोग रेग्युलर ब्रेकफास्ट नहीं कर पाते , उनमें गैस्ट्रिक , एसिडिक और कंसटीपेशन की दिक्कतें रहती हैं।


लंबा है यह गैप
डाइटीशियन रीतिका समादार का कहना है कि अक्सर डिनर और ब्रेकफास्ट के बीच में 10 से 12 घंटे का गैप होता है। इतना समय बॉडी के रेस्ट करने के लिए काफी होता है। अगर हम ब्रेकफास्ट स्किप करते हैं , तो इस गैप में कुछ घंटे और जुड़ जाते हैं। इससे मेटाबॉलिज्म पर इफेक्ट पड़ता है। '


यही नहीं , खाने के बीच में लंबे गैप से डाइजेशन की प्रॉब्लम भी हो सकती है। एक समय के बाद जब ब्रेकफास्ट के अलावा हम दूसरे मील्स भी स्किप करने लगते हैं , तब स्टोमैक और इंटेस्टाइन के श्रिंक करने के भी हालात बन जाते हैं।


8 से 10 के बीच
ब्रेकफास्ट का आइडियल टाइम सुबह के 8 बजे से 10 बजे तक का है। अगर आप इसमें देरी करते हैं , तब वेट गेन करने के हालात बनते हैं। सुबह में जागने के दो घंटे के भीतर ब्रेकफास्ट जरूर कर लें। एक हेल्दी ब्रेकफास्ट में सही मात्रा में प्रोटीन , कार्बोहाईड्रेट , फाइबर और विटामिन होने चाहिए। प्रोटीन के लिए लो फैट मीट , अंडा , चीज , नट्स और डेरी प्रॉडक्ट्स लिए जा सकते हैं। फाइबर के लिए ग्रेन , वेजिटेबल्स और फ्रूट्स लिए जा सकते हैं। सिरियल , सिरप और पेस्ट्री में हाई शूगर कंटेंट होने के कारण इन्हें अवॉइड भी किया जा सकता है(नवभारत टाइम्स ,दिल्ली,२४.२.१२) ।
Source : http://upchar.blogspot.in/2012/03/blog-post.html