Thursday, December 29, 2011

दही का सेवन कोलाईटीस रोगियों के लिए रामबाण आयुर्वेदिक दवा है

ऐसे खाएं दही तो इन बीमारियों का इलाज हो जाएगा अपने आप


ताजा दही सिर्फ टेस्टी ही नहीं होता बल्कि शरीर के लिए भी बहुत अधिक गुणकारी होता है। इसके विपरित खट्टा या पुराना दही शरीर को नुकसान पहुंचाता है।आज की भागदौड भरी जिंदगी में पेट की बीमारियों से परेशान होने वाले लोगों की संख्या सब से ज्यादा होती है। इस समस्या से परेशान लोग यदि अपनी डाइट में प्रचूर मात्रा में दही को शामिल करें तो अच्छा होगा। दही का नियमित सेवन करने से शरीर कई तरह की बीमारियों से मुक्त रहता है। दही में अच्छी किस्म के बैक्टीरिया पाए जाते हैं, जो शरीर को कई तरह से लाभ पहुंचाते हैं। पेट में मिलने वाली आंतों में जब अच्छे किस्म के बैक्टीरिया का अभाव हो जाता है, तो भूख न लगने जैसी तमाम बीमारियां पैदा हो जाती हैं।

इस के अलावा बीमारी के दौरान या एंटीबायोटिक थेरैपी के दौरान भोजन में मौजूद विटामिन और खनिज हजम नहीं होते। इस स्थिति में दही सबसे अच्छा भोजन बन जाता है। यह इन तत्वों को हजम करने में मदद करता है।

इससे पेट में होने वाली बीमारियां अपने आप खत्म हो जाती हैं। दही खाने से पाचनक्रिया सही रहती है, जिससे खुलकर भूख लगती है और खाना सही तरह से पच भी जाता है। दही खाने से शरीर को अच्छी डाइट मिलती है, जिस से स्किन में एक अच्छा ग्लो रहता है। मुंह के छालों पर दिन में 2-4 बार दही लगाने से छाले जल्द ही ठीक हो जाते हैं। शरीर के ब्लड सिस्टम में इन्फेक्शन को कंट्रोल करने में वाइट ब्लड सेल्स का महत्त्त्वपूर्ण योगदान होता है। दही खाने से वाइट ब्लड सेल्स मजबूत होते हैं, जो शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। लेकिन इसक ा सेवन कब और किस तरह करके ज्यादा लाभ उठा सकते हैं आइए जानते हैं कब और किस तरह इसका सेवन करके आप ज्यादा लाभ उठा सकते हैं।

- दही हमेशा ताजी ही प्रयोग करनी चाहिए।

- रात्रि में दही के सेवन को हल्का काला नमक,शक्कर या शहद के साथ ही किया जाना चाहिए।

- मांसाहार के साथ दही के सेवन को विरुद्ध माना गया है।

- दही दस्त या अतिसार के रोगियों में मल को बांधनेवाली होती है,पर सामान्य अवस्था में अभिस्यंदी अर्थात कब्ज कर सकती है।

- ग्रीष्मऋतु में जब लू चल रही हो तब दही की लस्सी ऊर्जा प्रदान करनेवाली तथा शरीर में जलीयांश की कमी को दूर करती है।

- नित्य सेवन से दही का प्रभाव शरीर के लिए सात्म्य होकर गुणकारी हो जाता है।

- मधुमेह से पीडि़त रोगियों में दही का सेवन संयम से करना चाहिए, इससे फायदा होता है।

- दही का सेवन कुछ आयुर्वेदिक औषधियों में सह्पान के साथ कराने का भी विधान है, जिससे दवा का प्रभाव बढ़ जाता है।

- दही का सेवन कोलाईटीस रोगियों के लिए रामबाण आयुर्वेदिक दवा है।

- बच्चों में ताजी दही पेट सम्बंधी विकारों को दूर करती है।

- दही एवं कच्चे केले को पकाकर आंवयुक्त अतिसार (म्युकोइड स्टूल ) को रोका जा सकता है।

- जब खांसी,जुखाम,टांसिल्स एवं, सांस की तकलीफ हो तब दही का सेवन न करें तो अच्छा।

- दही सदैव ताजीर एवं शुद्ध घर में मिटटी के बर्तन की बनी हो तो अत्यंत गुणकारी होती है।

- त्वचा रोगों में दही का सेवन सावधानी पूर्वक चिकित्सक के निर्देशन में करना चाहिए।

- मात्रा से अधिक दही के सेवन से बचना चाहिए।

- अर्श (पाईल्स ) के रोगियों को भी दही का सेवन सावधानीपूर्वक करना चाहिए।तो ऐसी है दही ,बड़ी गुणकारी,रोगों में दवा पर सावधानी से करें प्रयोग।
Source : http://akhtarkhanakela.blogspot.com/2011/12/blog-post_6214.html

Tuesday, December 13, 2011

अमृत रसायन लहसुन के अचूक प्रयोग

बिना दवा कंट्रोल करें थुलथुली काया अपनाएं लहसुन का ये अचूक चटपटा प्रयोग


आयुर्वेद के अनुसार यह मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय जब चौदह रत्नों में से एक अमृत भी हासिल हुआ तो देवताओं व दानवों में विवाद हो गया। तब ब्रह्मा ने देवताओं और दानवों को अलग-अलग पंक्तियों में बैठाकर अमृत बांटना शुरू किया। उस समय राहु नामक राक्षस ने देवताओं की पंक्ति में रूप बदलकर बैठ गया और अमृतपान कर लिया।
लेकिन जब देवताओं को पता चला कि वह राक्षस है तो विष्णु जी ने उसकी गर्दन काट दी लेकिन अमृत उसके हलक में पहुंच चूका था। इस घटना के दौरान दानव द्वारा पीए अमृत की कुछ बूंदे धरती पर बिखर गई उन्हीं बूंदों से धरती पर जिस पौधे की उत्पति हुई। वह लहसुन का पौधा था। इसलिए कहा जाता है कि लहसुन एक अमृत रसायन है। लेकिन चूंकी माना जाता है कि इसका प्रयोग करने वाले मनुष्य के दांत, मांस व नाखून बाल, व रंग क्षीण नहीं होते हैं। यह पेट के कीड़े मारता है व खांसी दूर करता है। लहसुन चिकना, गरम, तीखा, कटु, भारी, कब्ज को तोडऩे वाला व आंखों के रोग दूर करने वाला माना गया है। अगर आप थुलथुले मोटापे से परेशान हैं तो अपनाएं नीचे लिखे लहसुन के अचूक प्रयोग-

- लहसुन की पांच-छ: कलियां पीसकर मट्ठे में भिगो दें। सुबह पीस लें। उसमें भुनी हिंग और अजवाइन व सौंफ के साथ ही सोंठ व सेंधा नमक, पुदीना मिलाकर चूर्ण बना लें। आधा तोला चूर्ण रोज फांकना चाहिए।

- लहसुन की चटनी तथा लहसुन को कुचलकर पानी का घोल बनाकर पीना चाहिए।

- लहसुन की दो कलियां भून लें उसमें सफेद जीरा व सौंफ सैंधा नमक मिलाकर चूर्ण बना लें। इसका सेवन सुबह खाली पेट गर्म पानी से करें
Source : http://akhtarkhanakela.blogspot.com/2011/12/blog-post_7067.html

Sunday, November 13, 2011

निरामिष: पशु-बलि : प्रतीकात्मक कुरीति पर आधारित हिंसक प्रवृति पर एक टिप्पणी

आदरणीय डा. अरविन्द मिश्रा जी झींगा मछली हाथ में लिए हुए
आप में से चंद लोग मांस नहीं खाना चाहते तो न खाएं , यह आपका फ़ैसला है लेकिन मुसलमानों के मांसाहार की निंदा करने के लिए कम से कम क़ुरआन का सहारा तो आपको नहीं लेना चाहिए।
क़ुरआन में मांस खाने से कहीं रोका गया हो तो आप बताएं कि कहां रोका गया है ?
क़ुरआन के जानकार किसी अधिकृत मुस्लिम विद्वान ने वह कहा हो जो आप बता रहे हैं कि क़ुरआन का अर्थ यह नहीं है बल्कि यह है और निष्कर्षतः मांस न खाया जाए तो आप बताएं वर्ना तो हम आपको बताते हैं कि बनारस में झींगा मछली का पालन शुरू कर दिया गया है शाकाहारी ब्राह्मणों की देख रेख में ही।
आदरणीय अरिवन्द मिश्रा जी भी यह जानते हैं बल्कि हमें तो यह बात पता ही उनके ज़रिये चली। फ़ेस बुक पर हमने देखा कि आदरणीय मिश्रा जी अपने दसियों हिंदू भाईयों के साथ अपने हाथों में झींगा मछली लिए खड़े हैं।
हमें बड़ा ताज्जुब हुआ लेकिन यह सच था।
हमने समझा कि उनकी सोच में वाक़ई कुछ बदलाव आया है लेकिन यहां ‘निरामिष‘ ब्लॉग पर देखा तो फिर ताज्जुब हुआ कि जनाब मांसाहार का विरोध कर रहे हैं।
यह क्या बात हुई कि व्यावसायिक हितों के मददेनज़र तो मांसाहार को प्रोत्साहन दिया जाए और फिर उसी का विरोध भी किया जाए ?
यह कैसी सैद्धांतिक प्रतिबद्धता है ?
यही हाल दूसरे शाकाहारियों का है।
वे भी किसी न किसी रूप में जीव खा रहे हैं, दही और शहद आदि ख़ूब खा रहे हैं लेकिन बकरा खाने वाले का विरोध कर रहे हैं।
जीव छोटा हो तो खा लिया जाय और जीव का साइज़ बड़ा हो तो न खाया जाए ?
उनके विरोध से तो बस साइज़ का विरोध नज़र आ रहा है न कि जीव को मारने और उसे खाने का !
हमें उम्मीद है कि समय के साथ आप और बदलेंगे और तब यह सैद्धांतिक विरोध आप के विचारों में शेष न रहेगा।

Thursday, September 15, 2011

खाने की प्लेट चिकेन के बिना अधूरी होती है


खाने की प्लेट चिकेन के बिना अधूरी होती है। यह बात सुनकर कोई शाकाहारी व्यक्ति भले ही मुंह बिचकाए, पर चिकेन के शौकीन  इसका पुरजोर समर्थन करेंगे।बदलते समय में जब खान-पान की आदतें बदल रही हैं और बाजार में तमाम तरह के व्यंजन उपलब्ध हैं, ऐसे समय में चिकेन से बने व्यंजन लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं। शेफ सुहैल हसन कहते हैं आज चिकेन से बने कई तरह के व्यंजन उपलब्ध हैं। चिकेन पारंपरिक इंडियन करी से लेकर चाइनीज, इटालियन हर तरह के खाने में मिल जाएगा।भारतीय खाने में चिकेन बिरियानी, चिकेन करी, तंदूरी चिकेन जैसे व्यंजन मिल जाएंगे। अफगानी खाने में शोरमा, अफगानी तंदूर और कबाब जैसे लजीज पकवान मिल जाएंगे। इटालियन खाने में चिकेन पिज्जा और चिकेन पास्ता मिल जाएगा, वहीं चाइनीज खाने में चिकेन चाउमीन, चिकेन सूप, चिकेन चॉप्सी, चिली चिकेन, चिकेन मोमो और चिकेन मंचूरियन जैसे स्वादिष्ट और लोकप्रिय व्यंजन मिल जाएंगे। उनके अनुसार, फास्ट फूड के शौकीनों को भी चिकेन बर्गर, चिकेन पैटीस और चिकेन रोल जैसे ढेरों व्यंजन मिल जाते हैं। एक चिकेन से आज हजारों तरह के व्यंजन बनने लगे हैं।चिकेन के एक दीवाने परमानंद मिश्र का कहना है कि खाने में रोज ही चिकेन व्यंजन हो तो क्या बात है। लेकिन जरूरत इस बात की है कि वह अलग-अलग वेराइटी में हो। उनकी पत्नी सौम्या मिश्र ने बताया कि घर हो या बाजार, ननवेजेटेरियन्स की पहली पसंद चिकेन व्यंजन ही होते हैं। साथ ही उन्होंने जोड़ा कि घर आने वाले मेहमान अगर शाकाहारी हों तो बड़ी कोफ्त होती है। समझ में नहीं आता है कि क्या बनाएं और क्या खिलाएं। चिकेन के अन्य आशिक प्रसेनजित राज्यवर्द्धन ने कहा कि रोज के खान-पान का हिस्सा बन चुके चिकेन संस्कृति को बढ़ावा देने में रेस्त्राओं का भी खासा योगदान रहा है। उनकी पत्नी दिव्या ने बताया कि घर से बाहर उनकी पहली पसंद चिकेन से बने व्यंजन ही होते हैं।रेसिपी विशेषज्ञ ममता सिंह कहती हैं चिकेन कलचर आज इस कदर फैला हुआ है कि कुछ लोगों को इसके बिना भोजन अधूरा लगता है। कभी केवल घरों में पकने वाला चिकेन आज रेस्त्रां, कैफे के अलावा गली-मुहल्ले में स्थित रोल, मोमो और चाउमीन के फास्ट फूड के ठेले पर भी मिलने लगा है। वैसे पुरानी दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके के मशहूर करीम रेस्त्रां, न्यू फ्रेंडस कॉलोनी के अल बेक रेस्त्रां में दिन भर खाने के लिए लोगों की भीड़ जमा रहती है।

मैक्डोनाल्ड्स का मशहूर चिकेन बर्गर यहां आने वाले खाने के शौकीनों के सबसे पसंदीदा खाने में से एक है। वहीं केएफसी [केंटचुकी फ्राइड चिकेन] रेस्त्रां तो चिकेन प्रेमियों के लिए खास ही है। यहां चिकेन विंग्स, चिकेन बर्गर और चिकेन लेग्स जैसे चिकेन के ढेरों आइटम मिलते हैं। कनॉट प्लेस स्थित केएफसी आउटलेट मे काम करने वाले अतुल सिंह ने कहा कि इसका स्वाद एक बार चढ़ जाए तो छूटना मुश्किल होता है।चिकेन न केवल अपने देश में, बल्कि बाहर के देशों मे भी काफी लोकप्रिय है। अमेरिका में चिकेन इस कदर लोकप्रिय है कि वहां सितंबर महीना नेशनल चिकेन मंथ के रूप में मनाया जाता है। 15 सितंबर को वहां नेशनल चिकेन लवर्स डे के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन अमेरिका के कई रेस्त्राओं में मुफ्त चिकेन परोसा जाता है। इन्हीं में से एक पोलो ट्रॉपिकल रेस्त्रां चेन में आज के दिन हर साल दोपहर दो बजे से शाम के सात बजे तक पीले कपड़ों में आने वाले लोगों को मुफ्त में चिकेन परोसा जाता है। यानि जी भर के चिकेन खाइए वो भी बिल्कुल मुफ्त और मनाइए चिकेन लवर्स डे।

Monday, September 12, 2011

छोटा अंडा फायदे बड़े - कमलेश

अंडा तो तुमने देखा ही होगा। नाश्ते में या रात के खाने में अंडे की कोई न कोई डिश तो तुम जरूर खाते होगे। मम्मी भी अंडे से कितनी तरह-तरह की चीजें बनाकर खिलाती हैं और तुम्हें बहुत मजा भी आता है। पता है, अंडा होता तो बहुत छोटा है, पर बड़े-बड़े कमाल कर दिखाता है। गानों से लेकर खाने तक सबका मनपसंद है अंडा। पर सोचो अंडा सभी को इतना अच्छा क्यों लगता है? कभी मम्मी तो कभी डॉक्टर, सभी अंडा खाने के लिए क्यों कहते हैं? क्योंकि यह जितना स्वादिष्ट है, उतना ही स्वास्थ्यवर्धक भी। आओ जानें कि अंडा कैसे तुम्हें तंदुरुस्त और स्मार्ट बना सकता है।

सबसे पहले जानो कि अंडे के दो भाग होते हैं। एक सफेद रंग का बाहरी हिस्सा और दूसरा अंडे के बीच में पीले रंग का हिस्सा। इसे अंडे की जर्दी कहते हैं। अंडे में पोषक तत्वों की भरमार होती है। अंडे के दोनों भागों में प्रोटीन, वसा, कई तरह के विटामिन, मिनरल्स, आयरन और कैल्शियम जैसे गुणकारी तत्वों की भरपूर मात्र होती है। बहुत कम खाद्य पदार्थों में पाया जाने वाला विटामिन ‘डी’ भी अंडे में पाया जाता है। यह हड्डियों को मजबूत करता है और शरीर में बहुत सारी ताकत आ जाती है। अंडा खाने से आंखें तेज होती हैं और चश्मा भी नहीं लगाना पड़ता। अंडा तुम्हारी क्लास में फस्ट आने में भी काम आ सकता है। इसमें मौजूद कोलाई नामक तत्व दिमाग को तेज करने का काम करता है। इससे तुम्हारा दिमाग शार्प और तेज हो जाएगा और तुम फटाफट से सारे सवाल हल कर लोगे। यह कॉन्सन्ट्रेशन लेवल बढ़ाने में भी मदद करता है। इसके अलावा अंडा खाने से हमारा दिल भी एकदम स्वस्थ रहता है। अंडे के अंदर वाले भाग में वसा अधिक होती है और बाहर वाले भाग में प्रोटीन ज्यादा होता है। देखा, एक अंडा के कितने फायदे हैं। इतना ही नहीं, अंडे से ऑमलेट, ऑमलेट सैंडविच, ब्रेड ऑमलेट, भुजिया, अंडा डोसा और अंडा परांठा जैसी कई अच्छी-अच्छी डिश भी बन सकती हैं। आ गया न मुंह में पानी। तभी तो कहते हैं, संडे हो या मंडे रोज खाओ अंडे।
Source :
http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/lifestylenews/article1-egg--50-50-189947.html

Tuesday, June 21, 2011

स्किन को भी चाहिए स्पेशल फूड Special Food

झुर्रियों के प्राकृतिक उपाय

उम्र बढ़ने के अलावा सूरज की तेज रोशनी, प्रदूषण, धूम्रपान, तनाव, वजन कम होना और शरीर में विटामिन ई की कमी के कारण असमय ही त्वचा पर झुर्रियां पड़ने लगती हैं। आइए जानते हैं कुछ ऐसे उपाय, जो प्राकृतिक रूप से त्वचा को झुर्रियों से मुक्त कर सकती है।


अंडे की जर्दी: अंडे का सफेद हिस्सा चेहरे पर लगाने से झुर्रियों से निजात मिलती है। आंखों के नीचे और माथे की त्वचा पर मौजूद झाइयों से यह प्राकृतिक तरीके से मुक्ति दिलाता है। इसे गर्दन पर भी लगाना चाहिए। अंडे में भरपूर प्रोटीन, विटामिंस और मिनरल्स होते हैं।


पपीता: नहाने से पहले चेहरे और गर्दन पर पपीते का टुकड़ा रगड़ने से त्वचा कोमल होती है। इसमें मौजूद पापेन नामक तत्व त्वचा की मृत कोशिकाओं को हटाने और नई कोशिकाओं को विकसित करने में सहायक होता है।


केला: चेहरे व गर्दन पर केले का छोटा-सा टुकड़ा हफ्ते में एक बार रगड़ना चाहिए। यह विटामिंस से भरपूर होता है, जिससे त्वचा जवां दिखती है और झुर्रियों से सुरक्षित रहती है।


अनानास: इसे त्वचा पर लगाने से झुर्रियों से मुक्ति मिलती है, लेकिन रूखी त्वचा के लिए यह कारगर नहीं है। डिहाइड्रेट त्वचा कांतिहीन दिखती है, इसलिए भरपूर पानी पीना ही एक मात्र उपाय है।
जूस: फेस पैक तैयार करते समय उसमें पानी की बजाय नींबू, गाजर या ककड़ी का रस मिलाएं। यह तरीका अधिक फायदेमंद साबित होगा।


मसाज: जैतून, बादाम या नारियल के तेल से चेहरे की मसाज भी की जा सकती है। इसमें विटामिन ई होने से त्वचा का तेज बरकरार रहता है। वहीं मृत कोशिकाओं से मुक्ति भी मिलती है।


हल्दी: इसके पाउडर में गन्ने का रस मिलाकर तैयार पेस्ट लगाने से त्वचा में कसावट आती है। यह झुर्रियां दूर करने के साथ ही त्वचा निखारने में भी सहायक है। वहीं हल्दी की एंटीबैक्टीरियल प्रॉपर्टी त्वचा विकारों को भी दूर करती है।

Saturday, June 11, 2011

क्या बुज़दिल बना देता है लौकी का जूस ? , होम्योपैथी में विश्वास रखने वाले ब्लॉगर्स भाइयों से एक विशेष चर्चा -Dr. Anwer Jamal

'जैसा खाय अन्न वैसा होय मन' , यह उक्ति मशहूर है । आयुर्वेद और यूनानी तिब के विशेषज्ञ भी मानते हैं कि खान पान हमारे शरीर के साथ हमारे मन को भी प्रभावित करता है । होम्योपैथी में मिर्च से कैप्सीकम (capsicum) नामक दवा बनती है और उसकी मेटीरिया मेडिका में उसके मानसिक लक्षण भी लिखे होते हैं कि मन पर मिर्च क्या प्रभाव डालती है ?
'ऊँचाई से छलाँग' लगाने वाले का प्रमुख आहार लौकी का जूस था । उनके मन के निर्माण में लौकी का महत्वपूर्ण योगदान है । यह सारा ज़माना जानता है । ऐसे में यह प्रश्न उठना नेचुरल है कि क्या लौकी का जूस आदमी को बुज़दिल बना देता है ?अगर यह सही है तो हरेक क्राँतिकारी और सुधारक को लौकी के अत्यधिक सेवन से बचना चाहिए और जो लोग किसी अन्य वजह से अपने अंदर बुज़दिली महसूस करते हैं । अगर वे लोग होम्योपैथिक तरीक़े से लौकी को पोटेन्टाइज़ करके दवा बनाएं और इसका सेवन करें तो उनकी     बीमारी दूर हो सकती है ।

होम्योपैथी में विश्वास रखने वाले ब्लॉगर्स इस ओर ध्यान दें तो चिकित्सा के मैदान में भी उपलब्धि की एक ऊँची छलाँग लग सकती है ।

Sunday, March 13, 2011

भारतीय वैद्य और हकीम सदा से करते आ रहे हैं नपुंसकता का इलाज Erectile disfunction

सभी जानते हैं कि जो औज़ार कभी कभार इस्तेमाल किए जाते हैं उन्हें ज़ंग (Rust) लग जाता है और जो औज़ार नियमित रूप से और सही तरीक़े इस्तेमाल किए जाते हैं वे अपनी क्षमता को बनाए रखते हैं। मानव अंगों के बारे में भी यह बात सटीक बैठती है ।
अंगों को अपने काम अंजाम देने के लिए जो ऊर्जा चाहिए होती है वह उन्हें भोजन और पानी से मिलती है। इस रहस्य का पता भारत के वैद्य और हकीम बहुत पहले ही लगा चुके हैं और यही वजह है कि उन्होंने पथ्यापथ्य यानि भोजन में परहेज़ और चुनाव पर बहुत ज़ोर दिया। उन्होंने लोगों को अपने आहार में माँस , शहद , अंजीर , लहसुन , प्याज़ और अंडों का इस्तेमाल करने की सलाह दी और यह भी बताया कि दूसरे क्षेत्रों की तरह यहाँ भी अति वर्जित है। जो लोग इन चीजों के गुणों से अन्जान थे उन्होंने विभिन्न कारणों से इन चीज़ों के खाने पर प्रतिबंध लगा दिया और लोगों की यौन क्षमता को अपनी नादानी की वजह से कमजोर कर डाला जिससे उनका गृहस्थ जीवन बर्बाद होकर रह गया ।
वैद्य और हकीम भारतीय नर नारियों को जिन बीमारियों से मुक्ति दिलाते आए हैं , उनमें बाँझपन , शुक्राणुओं की कमी और ध्वजभंग ED भी हैं।
एक नौजवान हिंदू लड़का मेरे पास शुक्राणुओं की कमी की समस्या लेकर आया तो मैंने उसके वीर्य की जाँच रिपोर्ट देखी । रिपोर्ट के अनुसार शुक्राणु केवल 35 प्रतिशत थे। वह एक गरीब युवक था । सो जाहिर है कि मुनाफ़ाख़ोर ऐलोपैथ को उसमें कोई दिलचस्पी न थी और एक जगह से वह आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट भी ले चुका था। मैंने उसे मालिक का नाम लेकर 'शक्रवल्लभ रस और मूसली पाक' का सेवन कराया और 15 दिन के बाद जाँच रिपोर्ट में शुक्राणु 65 प्रतिशत हो चुके थे ।
क्या आप जानते हैं कि शक्रवल्लभ रस के घटक क्या है ?
आयुर्वेद सार संग्रह पृष्ठ 392 पर आप स्वर्ण भस्मादि अन्य सभी दवाओं की जानकारी हासिल कर सकते हैं ।
इन्हीं घटकों से हकीम साहब भी इन्हीं बीमारियों के लिए दवाएँ बनाते हैं। इस आयुर्वेदिक औषधि के बहुत सारा गुणगान करने के बाद अंत में लिखा है कि
'यह रसायन अत्यंत स्तंभक , बाजीकरण और स्त्रियों के मद को नष्ट करने वाला है।'
मैंने अपने अनुभव से पाया है कि ये सभी दावे सच हैं।

Wednesday, February 2, 2011

अब हर कोई खा सकेगा मांस Take meat

मांस से हमें उत्तम क़िस्म का प्रोटीन व विटामिन्स आदि कई ज़रूरी तत्व मिलते हैं। विश्व के सभी विकसित देशों में मांस का प्रयोग बेहिचक किया जाता है। वैज्ञानिकों ने भी मांस को संतुलित भोजन की तालिका में शामिल किया है। कृषि से मिलने वाली पैदावार इतनी नहीं है कि उससे विश्व की तमाम आबादी का पेट भरा जा सके। विश्व की ज़्यादातर आबादी के भोजन में हमेशा से ही मांस शामिल रहा है। भावनात्मक रूप से असंतुलित कुछ विचारकों ने मांस खाने का निषेध किया है क्योंकि मांस खाने के लिए जीव का जीवन ख़त्म करना पड़ता है। उनके अंधविश्वासी अनुयायियों ने उनका कहना मानकर अपना जीवन नर्क बना रखा है। वे खुद तो वैज्ञानिक सोच के विपरीत चलते ही हैं, साथ ही वे समाज में भी तरह तरह के भ्रम फैलाते रहते हैं। अब उनके लिए भी मांस खाना संभव हो गया है और वह भी बिना किसी पशु की जान गंवाए।

तो लैब में उगा सकेंगे मीट
वाशिंगटन। वैज्ञानिकों की मानें तो जल्दी ही मांस को भी फल फूल और सब्ज़ियों की तरह पौधों पर उगाया जा सकेगा। मेडिकल यूनिवर्सिटी आॅफ़ साउथ कारोलिना के वैज्ञानिक पिछले दस वर्षों से इस बायो इंजीनियरिंग मांस को उगाने का प्रयास कर रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है बायो इंजीनियरिंग मीट उगाने में सफलता हासिल करने से न केवल भविष्य में वैश्विक फ़ूड ज़रूरतें पूरी करने में मदद मिलेगी बल्कि इससे दिनोंदिन तेज़ी से सिकुड़ रहे उपजाऊ ज़मीन की उपलब्धता के झंझट से भी मुक्ति मिल सकेगी।
वैज्ञानिकों ने बताया कि परिकल्पित चार्लेस्टन इंजीनियरिंग मांस जिसे चार्लेस मीट कहा जा रहा है, को एक फ़ुटबाल के मैदान के आकार में बड़े बायो रिएक्टर की सहायता से उगाया जा सकेगा।
वैज्ञानिकों ने बताया कि इंजीनियरिंग मांस बिल्कुल प्राकृतिक होगा और आवश्यकतानुसार किसी भी स्वाद अथवा डिज़ाइन में इसे ढाला जा सकेगा। मसलन यदि आप को अधिक चर्बी वाला मांस पसंद है तो चर्बी वाले मांस उगा सकेंगे।
यही नहीं आपकी इच्छा और अनिच्छा के आधार पर मांस की दशा और प्रकार में भी परिवर्तन हो सकेगा। मसलन यदि आपको मुर्गे की टांग अधिक पसंद है तो आप उसके जैसे स्वाद का मांस उगा सकेंगे। वैज्ञानिकों ने बताया कि बायो इंजीनियरिंग मांस को बिना जीन के ही तैयार किया जा सकेगा। उनका मानना है कि अभी तक ऐसे कोई संकेत नहीं मिले हैं कि बिना जीन वाले मांस की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती है क्योंकि जेनेटिक मोडीफ़ाइड फ़ूड पहले से ही मार्केट में उपलब्ध है और उनसे अभी तक कोई साइड इफ़ैक्ट नहीं दिखा है।
अमर उजाला, नई दिल्ली, 2 फ़रवरी 2011 पृश्ठ 14
जीवदयाबाज़ों के रास्ते की सबसे बड़ी रूकावट को वैज्ञानिकों ने दूर करके उनके लिए मांस को उनके लिए सुलभ कर दिया है। अब उन्हें चाहिए कि वे खुद भी मांस खाएं और दूसरों को भी चैन से खाने दें।
A considerable number of people in the world are non-vegetarians and much of their diet is meat based. Meat is a wonderful source of protein and is essential in maintaining a balanced diet.
http://www.dietihub.com/the-different-meats-for-your-diet/